आहार
आहार
Diet
परिचय-
शरीर और भोजन का गहरा सम्बंध होता है। हर व्यक्ति को सादा और विटामिन युक्त भोजन करना चाहिए। ऐसा भोजन शरीर की सभी धातुओं को लाभ पंहुचाता है।
व्यक्ति को भोजन हमेशा भूख से थोड़ा कम ही करना चाहिए। कम भोजन करना स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होता है। भोजन उतना ही करना चाहिए जितना कि आसानी से पचाया जा सके।
शुद्ध व प्राकृतिक भोजन शरीर का पोषण करने वाला, जल्द ही शक्ति देने वाला, शांति देने वाला, साहस, मानसिक शक्ति और पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला होता है। भोजन से ही शरीर में सप्त धातुएं बनती हैं। आयुर्वेदाचार्य महर्षि चरक ने भी लिखा है कि `देहो आहारसंभव:´ अर्थात शरीर भोजन से ही बनता है। `उपनिषद´ में भी कहा गया है।
`आहार शुद्धौ सत्वाशुद्धि: सत्व-शुद्धौ।
ध्रुवा स्मृति:, स्मृतिलम्भे सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षा:,
अर्थात शुद्ध भोजन करने से सत्व की शुद्धि होती है। सत्वशुद्धी से बुद्धि शुद्ध और निश्रयी बन जाती। फिर पवित्र एवं निश्रयी बुद्धि से मुक्ति भी सुगमता से प्राप्त होती है।
ज्यादा भारी भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अच्छी तरह भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए। इससे अच्छा लाभ मिलता है। भोजन हमेशा शांतिपूर्वक करना चाहिए।
अपने भोजन और भोजन करने की आदत को सुधारकर मनुष्य सभी रोगों से दूर रह सकता है। इसीलिए कहा गया है भोजन ही दवा है। अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन के लिए आवश्यक भोजन करना चाहिए। हम जैसा भोजन करते हैं वैसा ही हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है।
जानकारी-
व्यक्ति जिस देश में और जिस मौसम में रहता है उसे वहां के फल और सब्जियों का भरपूर सेवन करना चाहिए क्योंकि प्रकृति ने उन्हें मौसम और जगह के हिसाब से उत्पन्न किया है।
भोजन के द्वारा हमारे शरीर को पंचतत्वों की प्राप्ति होती है-
आकाशतत्व - मिताहर द्वारा
वायुतत्व - साग-सब्जियों द्धारा
अग्नितत्व - फलों द्वारा
जलतत्व - सब्जियों द्वारा
पृथ्वीतत्व - अन्न कण द्वारा
भगवान श्रीकृष्ण जी ने गीता में तीन प्रकार के आहार बताए हैं।
सात्विक, राजसी, तामसी,
सात्विक आहार-
सात्विक भोजन आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य प्रेम को बढ़ाने वाला और मन को भाने वाले होता है।
राजसी आहार-
राजसी भोजन कड़वा, खट्टा, नमकीन, बहुत गर्म, तीखा, दाहकारक तथा चिन्ता और रोगों को उत्पन्न करने वाला होता है।
तामसी आहार-
तामसी भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्ध, बासी और अपवित्र होता है।